वो मनचली..

खूब सुंदर सी दिखी वो मनचली
जो रोज सिकुड़ती है अपने आंचल तले,
मैंने पूछा आखिर बात क्या है?
कहती चलो कहीं बाग में चलें..

रती भर ही बैठी वो पास मेरे,
जो लगती रही बुझी सी हर सांझ सवेरे..
खुशनुमा आंखों की रंगीनियां
मुसकुराते होंठों की बेचैनियां,
आज मैं पढ़ सकता था..
पर फिर भी पूछा,
आखिर बात कया है?

सुनो..आज डेट है मेरी,
किसी स्पैशल के साथ..
मैं बेचैन सा होकर पूछ बैठा,
अरे कौन है वो?

मैं हूं ना,
डेट है मेरी, मेरे अपने साथ..
मैं और सिरफ मैं..
हां आज डेट है मेरी,
डेट है मेरी, मेरे अपने साथ..
मैं मेरे लिये स्पैशल,
हां आज डेट है मेरी
डेट है मेरी, मेरे अपने साथ..!!

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वजह ।।

हँसते मुसकुराते चेहरे,
हँसी देखी सबने
गम किसने देखा ।

छुपते छुपाते आया अशक
मुसकुरा कर दे गया धोखा ।

गर हिमत्त थी तो ही सह गया अशक
वरना मुसकुराहट की वजह कया थी ।

मैं “सानिध्य”- (2)

अगर प्रथम वर्ष की बात करूं
मंमा मैं बहुत छोटा था,
बोलता नहीं था पर
था मैं शैतान,
पापा की मैं जान रहा
रहा घर में खुशियों की खान ..1

अगर द्धितीय वर्ष की बात करूं
मंमा मैं सब समझने लगा था,
चाहे कहता नहीं था
पर था मैं हैरान,
कि कैसे पापा का लाडला रहा
रहा घर आंगन की शान..2

कोई मुझे तूफान कहे
कोई कहे लंगूर,
पर मैं जानता हूं मंमा
मैं आपकी जान और पापा का सुरुर..3

मैं “सानिध्य” हूं
सनेह ही बरसाता हूं,
मंमा पापा के साये में
हर मुशकिल पार कर जाता हूं..4

आज मैं र्तृर्तीय वर्ष का हुआ हूं
मंमा पापा मैं आपके दिल की दुआ हूं,
आज आप ढेरों शुभकामनाएं लुटाओगे
” सानिध्य” पर सनेह भी बरसाओगे..5

“सानिध्य” बनकर रहूंगा आंगन में
सनेह की माला बनाता रहूंगा,
हर वर्ष बढूंगा आपके आंगन में
आपका शुक्रिया करता रहूंगा..
हर वर्ष बढूंगा आपके आंगन में
आपका शुक्रिया करता रहूंगा..6😊

अक्स

कमियां निकाल के खुद कम न रह जाये
वो जो हर चीज में कमी निकालता फिरता है,
कुछ सुधार खुद में भी कर के देखे
वो जो हर किसी को बुरा कहता फिरता है ।
घमंड़ न ही करे अपने नखरों पर
वो जो खुद को शहरी कहता फिरता है,
जालिम ए जिंदगी वो कया जाने
वो जो खुद को सबसे बहतरीन तोलता फिरता है ।
पांव जरा जमीन पर रहने दो साहब
कि आसमान में फर्श न मिलेगा,
एक बार खो गया जो अक्स
फिर ढूंढने पर भी वो अक्स न मिलेगा ।।

नासमझ😝

नासमझी में ही अब करूं गुजारा
समझदारी तो यूं ले डूबी
कि बेवकूफ मैं हर नजर में रहा
कि बस यही रही खूबी ।

मामला ये है कि सब समझदार हैं
अपनी- अपनी नजर में
उलझनों में उलझे
सब किसी न किसी फिक् में ।

मैं नासमझ ही रहूंगा ताउम्
कि बंदिशों से मेरी निभती नहीं है
बेवकूफी ही सार है कहानी का
कि समझदारी भी अब पूछती नहीं है ।

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🤗🤗

नरम उंगलियों का एहसास
और मलमल का बिछोना
आज भी पसंद है
बचपन का नाजुक खिलौना..।

आंखों की नमी में ही तैरी
कशतियाँ आज कागज वाली
बचपन तो छूटा समय के साथ
मेरी बालकोनी भी हुई खाली..।

एक झटके में निकली इस सोच से
कि जो छूट जाये फिर नहीं आता
उम्र का हर पड़ाव है जरूरी
पर काश बचपन फिर मेरे रूप में खिलखिलाता..।

मैं उमीद से भरपूर हूं
और नाजुक खिलौना दिल के पास
निराशा की कशतियां छूटी बारिश में
कि फिर से खुद को बंधाई आस..।

फर्ज

कुछ तो खोया रहता है
सब कुछ होने के बाद भी,
थोडा़-थोडा़ हंसना पडता है
कुछ-कुछ रोने के बाद भी..!

चल रे मन कर हिम्मत
कुछ काम निपटाने बाकी हैं,
रूह मिट्टी में मिलने से पहले
कुछ फर्ज निभाने बाकी हैं..!!

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हालात..

हालात वही, शुरूआत वही
लोग वही, मुलाकात वही
कुछ भी न बदला अब तक
जो कल था सब आज वही
मैं अब आगे आऊं कैसे
बोलो कदम बढाऊं कैसे
हर कोशिश नाकाम हुई
खास सी वो जिंदगी
जाने कैसे सरेआम हुई
जज़बात वही खयालात वही
जो कल था सब आज वही
कुछ तो करना है मुझे
पर राह भी मालूम नहीं
सब वैसा ही चल रहा
मैं भी हूं गुम कहीं
ये काश तो काश रह जाता है
मेरे बेतरतीब खयालों का
सागर भी तो बह जाता है
मैं निशब़द हूं , नाकाम सी
जैसे.ढली हुई शाम सी
कोई कहीं से शुरूआत कराए
कुछ तो जरा राह दिखाए
मैं कैसे.बदलूं हालातों को
कहीं कुछ तो समझ.में आये
हालात वही, शुरूआत वही
लोग वही, मुलाकात वही
कुछ भी न बदला अब तक
जो कल था सब आज वही !!

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कयूं ना मुसकुरा लिया जाये !!

हालातों से तो जू़झना ही है
तो कयूं ना मुसकुरा लिया जाये,
हर किसी से सब कुछ कया कहना
तो कयूं ना जख़म छुपा लिया जाये,
यूं किनारा नहीं करते मंजिल के पास आकर
तो कयूं ना अबकी बार दिल को समझा लिया जाये..!

वो कहते हैं कमजोर हो तुम
तो कयूं ना अब ऐसे ही निभा लिया जाये,
शुकि्या उन लोगों का जो राह दिखा गये
तो कयूं ना मुसकुराहट को ही ताकत बना लिया जाये,
हर किसी की कसौटी पर खरा नहीं उतरना
तो कयूं.ना खुद को खुद की नजर में हीरा बना लिया जाये..!!

चलो मुसकुरा लिया जाये
हर गम दफना लिया जाये,
जमाने की आदत ना बदलेगी
कयूं ना इन बातों को धुऐं में उडा़ लिया जाये,
चलो मुसकुरा लिया जाये..!!!

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खवाहिशें

दबी सी रह जाती हैं खवाहिशें पिंजरे में
जब उड़ने को पूरा आसमां नहीं मिलता
कुछ तो छूट ही जाता है समय के साथ
हर खवाहिश को मुक्कम्ल जहां नहीं मिलता

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